23 जून 2010

नेपाल में सबकुछ मिलता है पर मैं हिम्मत न जुटा सका!

गत दिनों नेपाल जाना हुआ वजह कुछ खास नहीं, थोड़ा धूम-फिर लूं बस। वैसे तो नेपाल की खुबसुरती से सभी वाकिफ है और मैं भी था, पर नेपाल की जमीं पर कदम रखते ही जिस बात का एहसास हुआ वह मेरे लिए चौंकाने वाली थी। अपने एक मित्र अभय कुमार के साथ जैसे ही जोगवनी रेलवे स्टेशन उतरकर विराटनगर प्रवेश किया तोे किसी प्रकार की जांच के बिना प्रवेश कर गया और जिस चीज पर पहली नज़र पड़ी वह थी वीयरवार की लंबी कतार और  अधिकतर दुकानों में महिला दुकानदार। मेरे मित्र सबसे पहले वियरवार का ही रूख किया। खैर हमलोग एक वीयरवार में बैठ गए, अभय ने अपने लिए वीयर मंगाया और मेरे लिए ठंढा, क्योंकि उसे पता है कि मैं वीयर नहीं पीता। वीयरवार के संचालक से जैसे ही मैेंने पूछा कि नेपाल में क्या-क्या है की उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान छा गई और कहा ``पहली बार आयो हो साहब´´ जब मैेने हां कहा तो उसने कहा ``नेपाल में सब कुछ मिलता है।´´ ``सब कुछ मिलता है´´ मैंने चौंकते हुए पूछा तो उसने नेपाली हिन्दी में कहा ``सब कुछ, मतलब सबकुछ।´´ मैं अभी तक दुकानदार के इशारों को नहीं समझ रहा था, तभी साथ ही बैठा एक युवक जो वीयर का मजा ले रहा था, खड़ी हिन्दी में कहा ``सर यहां लड़कियां और शराब छूट कर मिलती है, एक दम सस्ती, सब्जी के भाव। बगल के वीयरबार में ही यह व्यवस्था है और इण्डिया से लोग नेपाल इसीलिए आते है।´´ जब उस युवक से जान-पहचान  बढ़ाई तो उसने अपना नाम नरेन बताया और कहा कि वह बहुत दिन इण्डिया में रहा है। खैर वीयरवार से निकल कर जब हम लोग धरान जाने के लिए बस के बारे में पूछा तो नरेन ने कहा कि चलिए सर आपको मैं ले चलता हूं। नरेन के ऐसा कहने पर मैं तो सकपकाया पर मेरे मित्र ने हामी भर दी। और हम लोंग वीयर सहित ठंढ़ा एवं नमकीन के लिए 250 नेपाली रू. चुकाया, वहीं दुकानदार ने बताया कि आई सी का 100 का 160 एन सी मिलता है। आई सी मतलब इण्डियन करेंसी और एन. सी. मतलब नेपाली करेंसी।

 वहां से हम लोग नरेन के साथ बस अडडे की ओर चले तो नरेन ने कहा कि चलिए साहब आप लो जिस चीज के लिए आये है पहले वहीं ले चलते है। नरेन का मतलब वेश्यालय से था और हम लोग उसे बताने लगे कि हम लोग मात्र धूमने आये है तो उसने बहुत ही बेतक्कलूफ के साथ कहा कि छोड़िए साहब सभी लोग यही कहते है। अन्तत: बड़ी मुिश्कल से उससे यह कह कर पिण्ड छुड़ाया कि हम लोग लौटने के बाद उससे मिलेगें और उसका नंबर लिया ताकि उससे संपर्क कर सके और हम लोग धरान की बस पर सवार हो गए। विराट नगर से धरान के रास्ते कई मकानों के आगे सजी धजी महिलाऐं मिली और हमलोग स्वभावगत उसकी ओर देखने लगते थेे तभी थोड़ी दूर जाने के बाद जब चालक से जानना चाहा कि नेपाल में क्या खास है तो उसने भी कहा यहां सबकुछ मिलता है जी। हम लोग मुस्कुरा कर रह गए और जब बगल की सीट पर बैठे एक भारतीय जैसे बुजूर्ग से मैंने पूछा ये सभी लोग ऐसा क्यों कह रहे है तो उसने बताया कि नेपाल आने वाले ज्यादातर लोग लड़कियों के लिए ही नेपाल आते है और नेपाल का मुख्य धंधा ही वेश्यावृति है तो हमलोगों को आश्चर्य हुआ। नेपाल के विराट नगर से धरान तक का सफर वादियों से होकर चलता हुआ था। रास्ते में महिलाओं का काफिला पीठ पर लकड़ी का गठ्ठर  लिए बेपरवाह चली जा रही थी। किसी महिलाओं के सीने पर आंचल नहीं। घुठने तक लहंगा उठाऐ महिलाऐं अलमस्त चल रही थी।

 जब हम लोग धरान पहूंचे तो पहलीबार किसी विदेशी जीम पर होने का एहसास हुआ। मैं चूंकि गांव का रहने वाला हूं इसलिए कौतूहल भी हुआ। मिनी स्कर्ट और मिनी टॉप पहने सजी-धजी सुन्दर युवतियां और महिलाऐं सभी जगह अपना जलबा विखेर रही थी। कुछ साड़ी तो कुछ समीज-सलवार पहनेे महिलाऐं भी नज़र आ रही थी पर किसी ने आंचल या ओढनी के लिए कष्ट नहीं उठा रखी थी और हमलोग जिन नजारों को सिनेमा में देखते थे उसे जिवन्त देख देख प्रफुिल्लत भी हो रहे थे और झेंप भी रहे थे। जब मैंने एक बुजुर्ग, जो हाथ में सेविंग बॉक्स लिए जा रहे थे और इससे यह समझने मे मुझे देरी नहीं हुई की ये नाई है और चेहरा भी भारतीय है, तो उनसे काली मन्दिर जाने का रास्ता पूछा तो उन्होनों पक्की सड़क होकर जाने का रास्ता बताया साथ ही यह भी हिदायत दी की सामने वाले रास्ते से भी जा सकतें है पर रास्ते में गलत लोग रहते है।

 हमलोग गये तो पक्की सडक से काली मन्दिर और वहीं से उंचे पहाड़ों पर बादलों की अटखेलियों को कैमरे में कैद करते हुए जब लौटने लगे तो दूसरे रास्ते से होकर जाने का कौतुहल हुआ। जब हमलोग नीचे उतरने लगे तो थोड़ी दूर जाने के बाद नजारा कुछ यूं था। झाड़ियों के बीच जोड़े आलिंगनबद्ध जहां तहां आनन्द में डूबे हुए थे और बगल में एक आधा लड़की भी खड़ी नज़र आ जाती, जैसे की मेरा ही इन्तजार कर रही हो।

 इतनी सुगमता से उपलब्ध नारी सौन्दर्य का पान करने के लिए बरबस ही मन मचलने लगा और अन्दर ही अन्दर द्वन्द चलने लगा। हम दोनों मित्र एक दूसरे का चेहरा देखने लगे। शायद पहल कौन करे यही द्वन्द थी और मैंने पूछ ही लिया -क्या अभय ने कहा ``हिम्मत हैंं।´´ इसी द्वन्द के साथ हम लोग अपने अपने हिम्मत को टटकोलते हुए सीढ़ियों के साथ साथ नीचे उतरते चले गए। द्वन्द भी अजीब अजीब आखिर तर्क तो सभी के लिए रास्ता बनाता है। एक मन कहे कि ``आज यह अरमान भी पूरा कर लो´´ पर एक मन रोकते हुए तर्क देता `अरमान पूरा कर भी लिया तो क्या आनन्द तो नहीं मिलेगी, बिना प्रेम के संसर्ग में आनन्द कहां, 

 और फिर भला इस पाप के बोझ के साथ क्या अपनी पत्नी का सामना कर पाउंगा, जिसने आन्नद के अतिरेक स्वर्ग में बार बार डुबोया हैर्षोर्षो और आखिर कर हम सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए भी नीचे नहीं गिरे। दोनों दोस्त एक दूसरे को हिम्मत नहीं जुटा सकने के आज भी कोस रहे है पर मेरा मन मुझे हिम्मत नहीं जुटाने के लिए धन्यवाद दे रहा है।

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