यह मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाली घटना है। लिखते हुए हाथ कांप रहे।
मदर इंडिया वाला साहूकार (सूदखोर) आज भी है। जैसे उसने एक विवश मां से सूद के बदले देह मांगा, वैसा आज भी हो रहा। कई गांव में। कई शहरों।
गांव में यह जाल, मकड़जाल जैसा आदमी का खून चूस रहा। आदमी तड़प कर मर जाता है।
ऐसे ही एक जाल में फंसे पूरे परिवार ने जीवन लीला समाप्त कर ली। माता, पिता और चार बच्चों के परिवार में एक बच्चा बच सका।
धर्मेन्द, मूल रूप से शेखपुरा जिला के पुरनकामा गांव के निवासी थे। दस साल पहले पलायन कर दिल्ली गए तो गांव से नाता टूट गया। फिर नालंदा के पावापुरी में कपड़ा का छोटा व्यापार शुरू किया। दो बेटी, दो बेटा। सभी का पालन पोषण। कर्ज होता चला गया। स्थानीय सूदखोरों ने सूद दिया। फिर समय से नहीं लौटने पर प्रताड़ना। बेटियों के लिए अपमानजनक शब्द कहे..। बस क्या था...पूरा परिवार खत्म।
सूदखोर का यह मकड़जाल सभी जगह ऐसे ही चल रहा। यह समाज की बड़ी विसंगति है। आज जब सरकार गरीबी का आंकड़ा दिखा कर इसे खत्म करने का दावा करती है तो यह घटना सरकार के मुंह पर तमाचा है।
जनधन योजना छलावा है। आम आदमी , आम व्यापारी को बैंक कर्ज नहीं देती। मिलता उसे ही है जो दलालों के माध्यम से कमीशन दे।
गरीब इस मकड़जाल में है। अभी इसमें मैक्रो फाइनेंस वाले भी है। नया साहूकार। कुछ लाइसेंसी, कुछ बिना लाइसेंस के। बसूली।
आज भी चिमनी पर काम करने जाने वाले मजदूर से 10 रुपए प्रति सैकड़ा सूद दबंग वसूल रहे। ऐसे खून चूसने वाले भी समाज में प्रतिष्ठित है।
आज मोबाइल तो ईएमआई पर मिल जाएगा पर रोटी, किताब नहीं...!
धर्मेन्द की घटना न तो पहली है, न ही आखरी होगी...
हम थोड़ी सी संवेदना देंगे, तर्क वितर्क होगा। कुछ पक्ष में, कुछ विपक्ष में बोलेंगे, बात खत्म...
दुखद
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