आज बात प्रशांत किशोर की ....
प्रशांत किशोर, पश्चिम की कंपनियों में राजनीतिक ब्रांडिंग की नौकरी का अनुभव लेकर अपने देश लौटे और अपने देश के राजनीतिक दलों के लिए मार्केटिंग और ब्रांडिंग करने लगे।
नरेंद्र मोदी से सफर शुरू कर केजरीवाल, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी आदि, इत्यादि को जीत दिलाने के दावे करते रहे। इन्हीं दावे, प्रति दावे के बीच उनमें भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागी । उनके पास राजनीतिक दलों के प्रमुख का सानिध्य था । पहले चरण में प्रशांत किशोर ने जो राजनीतिक दांव चली, उसमें औंधे मुंह गिर पड़े।
वे कांग्रेस, ममता बनर्जी, जदयू सहित अन्य दालों के सहारे पीछे के दरवाजे से प्रवेश की राह चुनी । नेताओं ने हमेशा की तरह अपने से होशियार के लिए प्रवेश मार्ग को बंद ही रखा।
इसके बाद प्रशांत किशोर अपने राजनीतिक दलों से प्राप्त अनुभव से अपनी प्राइवेट लिमिटेड राजनीतिक दल के गठन की रणनीति बनाई। रणनीति के तहत जन सुराज में राजनीतिक दलों से अलग युवाओं को कार्यकर्ता नहीं बनाकर, उसे नौकरी दी। वेतन पर रखा।
चूंकि प्रशांत किशोर का राजनीतिक पार्टियों के मार्केटिंग और ब्रांडिंग का पेशा था, तो इसका प्रयोग उन्होंने शुरू कर दिया। प्रशांत किशोर की कंपनी में सोशल मीडिया के महारथी की फौज है और इसके उपयोग, दुरुपयोग की महारथ भी है।
बस, इसी के साथ खेल शुरू हुआ। पदयात्रा पर निकले । उनकी पदयात्रा जहां भी गई उनकी कंपनी के वर्कर गए। भीड़ जुटा, माहौल बनाया। यह राजनीति में पूंजीवाद और पश्चमीकरण की प्रकाष्ठा है।
इस खेल में मीडिया को अपना हिस्सा बनाने के लिए बड़े से बड़े मीडिया मर्डोक को व्यापारिक साझेदार बनाया।
फिर छोटे-छोटे यूट्यूबर, फेसबुक पत्रकार को भी पकड़ा और वीडियो के दर्शक के अनुसार आमदनी देने का समझौता कर लिया।
अब माहौल बन गया । इसकी ताकत दिखाने में पटना में प्रदर्शन हुआ। परिणाम आया। सेवानिवृत आईएएस, आईपीएस से लेकर ठेकेदार, व्यापारी, पूंजीपति, लंपट, लठैत, सोशल मीडिया के जन नेता, सोशल मीडिया के समाज सेवी, भौकाल बनाने वालों ने लाइन लगा दी।
साथ-साथ विभिन्न जिलों में मुख्य राजनीतिक दल से टिकट की तत्काल उम्मीद छोड़ चुके पंचायत स्तर से लेकर प्रखंड, जिला, विधानसभा और लोकसभा स्तर तक के अति महत्वाकांक्षी उनके पीछे दौड़ लगा दी है।
सभी वर्तमान में जनसुरज के विचारधारा नीति रणनीति की चापलूसी कर रहे हैं।
अब कई चुनौतियां भी है । पहले तो यह है कि सभी जिले में जो लोग कथित तौर पर जनसुरज से जुड़े हैं। वे अति महत्वाकांक्षी हैं। टिकट नहीं मिलेगा तो यह क्या करेंगे, यह एक चुनौती है।
हालांकि समाज के बीच से सच्चे सेवक को उठाकर जीतने का भरोसा प्रशांत किशोर कई संबोधनों में दे चुके हैं परंतु यह एक असंभव कार्य है।
दूसरी चुनौती प्रशांत किशोर के सामने प्रशासनिक अधिकारी होंगे। अनुभव बताता है की नौकरी करते हुए आम आदमी को कुत्ते बिल्लियों की तरह दुत्कारने वाले राजनीति में भी वही स्वभाव लेकर आते हैं ।
तीसरी चुनौती है बिहार के जातिवाद को तोड़ने की । प्रशांत किशोर एक ब्राह्मण है। चुनाव में इसका प्रयोग होगा । अभी के माहौल में वे करेजा चीर कर दिखा दें, तब भी वोट में जाति एक कड़वा सच है और वह अभी रहेगा ही।
अब प्रशांत किशोर ने भाजपा की चिंताएं बढ़ा दी है। राजद, स्वाभाविक रूप से मन ही मन प्रफुल्लित है।
प्रशांत किशोर के साथ अभी अगड़ी जातियां के मुखर लोग ज्यादा दिख रहे हैं। ये आज भी लिजर्ड सिंड्रोम से बाहर नहीं आ पा रहे। केवल इनको ही लगता है दुनिया को बदल देंगे।
और कुछ बनिक और कुछ धनिक भी अपने लालच में सामने आए हैं।
यादव, मुसलमान जिसके साथ हैं, रहेंगे। अत्यंत पिछड़ी जातियां इधर-उधर आसानी से नहीं होती। दलितों के लिए सवर्ण नेता आज सर्वाधिक घृणा के पात्र है।
अब बिहार में नीतीश कुमार के स्वास्थ्य कारणों से कमजोर पड़ने के बाद बिहार में नेतृत्व की विकल्पहीनता अपने चरम पर है। उनकी अपनी पार्टी में खटपट सामने आ चुका है।
भाजपा के पास भी इसकी कमी है। बाद में संगठनों से आयातित विकल्प आएंगे । यह अलग बात है।
तेजस्वी यादव ने अपनी राजनीति की लॉन्चिंग के बाद एक दो असफलताओं से सीख कर ए टू जेड का नारा दिया। यह केवल मंचीय नारा रह गया।
वर्तमान में , आमतौर पर राजनीति करने वाले नेताओं की तरह ही सोशल मीडिया और अपने पिता के पूर्व के कुछ से घृणा और कुछ का तुष्टिकरण की राजनीति की राह पर तेजस्वी यादव चल रहे हैं। अपने शासन काल में धन जोड़ो अभियान ही चलाया। आदमी नहीं जोड़ सके।
चिराग पासवान! पिता और स्वजातीय के लिए अलाउद्दीन का चिराग भर हैं, बस।
अभिनेता रहे हैं तो उनका अभिनय पिता के पुण्यतिथि से लेकर सभी राजनीतिक कार्यक्रमों में भी दिखता है।
तब एक उम्मीद प्रशांत किशोर हैं। विकल्पहीनता का विकल्प। आंधों में काना राजा।
अब विकल्प बनेंगे, कितना सीट लायेंगे, कितना बदलाव करेंगे, सब भविष्य के गर्भ में है । भविष्यवाणी अक्सर झूठी अथवा प्रायोजित होती है।
वर्तमान में केजरीवाल का छलावा प्रशांत किशोर की प्रेत बाधा है। उससे भी बड़ी प्रेत बाधा , नीतीश कुमार का सामाजिक न्याय के नारे के साथ बिहार के विकास के लिए खींच दी गई बहुत बड़ी रेखा है। इस रेखा से बड़ी रेखा खींच सकने का विजन तक अभी किसी अन्य नेता और पार्टियों में दिखाई नहीं पड़ता है। बस।
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