71 वर्ष की उम्र में दूसरे जन्म का दूसरा जन्म दिन हर्षोल्लास से मनाना बहुत बड़ी है। डॉक्टर कृष्ण मुरारी जी। डॉक्टर होकर भी समाज से जुड़े रहे। समाज के होकर, समाज के साथ रहे।
आज के दौर में बुराई तो एक ढूंढो, हजार मिलेंगे। बुराई ढूंढने वाले भी लाखों है। बस दूसरों की तरफ उठी एक उंगली पर हमारा अहंकार इतना होता है कि अपनी तरफ के तीन उंगलियों को भूल जाते है।
इसी को लेकर निदा फाजली की गजल है।
जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना
यूँ उजालों से वास्ता रखना
शम्मा के पास ही हवा रखना
घर की तामीर चाहे जैसी हो
इस में रोने की जगह रखना
मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिये
अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना
मिलना जुलना जहाँ ज़रूरी हो
मिलने-जुलने का हौसला रखना
पर हम अब कहां आईना रखने में विश्वास रखते है।
खैर, बात डॉक्टर कृष्ण मुरारी जी की। कल ही जब साथ बैठे भुट्टा खा रहे थे तो हंसते हुए कहा, "मरना तो एक दिन है ही तो क्यों नहीं जी भर कर जी लें।"
जीवन के कठिन से कठिन घड़ी में इनको उदास, हताश नहीं देखा।
कई बातें है। पर केवल एक बात। दूसरे कोरोना काल में ये शेखपुरा के सिविल सर्जन थे। इसी बीच इनका किडनी फेल हो गया। ये डायलिसिस कराते हुए अपना काम मजबूती से करते रहे। कभी पीछे नहीं हटे, डटे रहे। बोलते थे, "धुत्त, जे होतय। देखल जयतै।"
उस महामारी के पहले दौर में ही इन्होंने कहा था, "अरे यह कोई महामारी है । इसका वायरस तो साबुन से हाथ धोने से मर जाता है। डरना क्या है। हाथ धोते रहिए। सावधानी रखिए।"
फिर 68 वर्ष की उम्र में इनका किडनी ट्रांसप्लांट हुआ। ये जरा भी नहीं डरे। पॉजिटिव सोचते रहे। आज उसी ट्रांसप्लांट की वजह से ये अपना दूसरा जन्म दिन, गोशाला में बड़े आयोजन के साथ मना रहे। जिंदादिली। जिंदाबाद है।
इनके शतायु होने की प्रार्थना ईश्वर से करते है।
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