नवादा में महा दलितों के घर जलाने की बेदर्द घटना और दबंगों की जाति
बिहार पुनर्मूषको भव की राह पकड़ लिया है। शनै शनै सब कुछ घट रहा। सब कुछ डरावना है। इसी में नवादा में तीन दर्जन महा दलितों के घरों को जला दिया गया। पर नवादा की घटना में राजनीति और समाज का दोहरा चरित्र भी स्पष्ट रूप से सामने आया। चर्चा उसी की है।
आग लगाने की घटना में पहली खबर जो ब्रेक हुई इसमें दबंगों के द्वारा दलितों के घरों को जलाने की खबर थी। पूरे विपक्ष ने इसे पकड़ लिया, राहुल गांधी से लेकर तेजस्वी तक। सब भड़क गए। आम तौर पर दबंग का मतलब सवर्ण जाति मान लिया जाता है। पर कई घटनाओं की तरह, यहां भी सच कुछ और निकला।
घरों को जलाने वाले दलित और पिछड़ा जाति के लोग ही निकले। अब बात बदल गई। अब छांपो छांपो हो रहा।
मतलब, अत्याचार की गंभीरता भी अब जाति वाद की जद में है।
खैर, नवादा में यह भी सामने आया की अभी कम से कम बिहार में मुसहर से बेवश और लाचार कोई जाति नहीं है। इनको बल दे कर उठाने की जरूरत है। पर नहीं, क्रिमिलियर के विवाद में सबसे आगे बढ़कर इसका विरोध करने वाले ही मुसहर के घरों को आग के हवाले कर दिया।
आज वहां वेवशी है। सहानुभूति की औपचारिकता है। और राजनीति है। भला इनका होना नहीं है।
होना रहता तो 1995 से केस चल रहा। फैसला आ गया होता।
खैर, बिहार पीछे जा रहा। अपराध बढ़े ही नही, अपराधी रेस में है। कौन किससे आगे।
बिहार का वह जंगलराज का दौर था जब शान से कहा जाता था कि मेरे कुटुम रंगदार है। उसी दौर को लाने की सुगबुगाहट है।
कैसे हो रहा। सबको पता है।
इतना ही नहीं, सर्वे में जमीन मालिकों से लूट, अंचल में खुलेआम डकैती, प्री पेड बिजली मीटर से पॉकेटमारी सब कुछ हो रहा है। किसी की कोई सुनता नहीं है।
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