मैला आंचल। फणीश्वर नाथ रेणु। अद्वितीय रचना में भी जब कमला और डागडर साहब के रूठने, मनाने, नोंकझोंक उल्लेख आता है।
हैजा डागडर..! रेनू जैसा शाश्वत साहित्य का मर्मज्ञ दूसरा कोई नहीं होगा। पता नहीं मैला आंचल कितनी बार पढ़ा है। फिर पढ़ रहा।
गांव की बोली। गांव की भाषा। गांव का चरित्र। गांव का संस्कार। गांव की कुटिलता। गांव की क्रूरता। गांव का प्रेम । गांव का दुख।
जाने क्या-क्या है। बाकी बातों पर बाद में चर्चा ।आज है डागडर और कमला का नोक झोंक सामने आया तो हठात अपना जीवन सामने आकर खड़ा हो गया। आज तक यही तो जिया है।
खैर, सोचा औरों को भी इसे पढ़ाना चाहिए। गांव, समाज, देश, राजनीति, अध्यात्म सबकुछ बारीक से समझना तो मैला आंचल पढ़ लीजिए... कुछ संवाद संलग्न है...
ओशो भी कह गए हैं। प्रेम में तकरार प्रमाणिक है। जहां तकरार नहीं, समझना प्रेम खत्म । समझौता शुरू। बस..
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