राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विशेष: क्या हर आदमी बेईमान है...?
जैसे यह मान लिया गया है कि हर अधिकारी, कर्मचारी, बेईमान है। हर आदमी बेईमान है। वैसे ही यह मान लिया गया है कि हर पत्रकार बेईमान है।
सबसे पहले, यह सच नहीं है। सच यह है कि हम सब समाज का आईना है। तो जैसा समाज, वैसा हम..!
अब आते है। बड़ी बड़ी बातों के कुछ नहीं होता। हम सब एक दूसरे को चोर, बेईमान, भ्रष्ट बताने में लगे है। और हम सब चाहते है कि दूसरा आदमी ईमानदार हो..!
यह ठीक वैसा ही है, जैसा कि हर कोई चाहता है, दूसरे का बेटा भगत सिंह बने..!
यह ठीक उस कहानी की तरह है, जिसने राजा के कहने पर तालाब में एक एक लोटा दूध देने कोई यह सोच कर नहीं गया कि मेरे एक लोटा देने से क्या होगा। दूसरा तो देगा ही। और तालाब में किसी ने एक लोटा दूध नहीं दिया।
और यह ठीक वैसा ही है जैसा आचार्य ओशो कहते है कि धार्मिक आयोजनों में प्रवचन कर्ता कभी यह नहीं कहते कि मैं संत हूं..! वे केवल यह कहते है कि तुम चोर हो। तुम बेईमान हो। तब हम स्वयं मान लेते है वे संत है।
यह बहुत साधारण सी बात। गांधी जी ने कहा है, जो बदलाव आप दूसरे में देखना चाहते है उसको शुरुआत स्वयं से करें....
पर हो क्या रहा है, हम बदलाव तो देखना चाहते है, पर दूसरे में। अपने लिए कोई मानक नहीं है।
पंडित श्री राम शर्मा आचार्य ने कहा है, हम बदलेंगे, युग बदलेगा..! पर हम आज युग तो बदलना चाहते हैं पर हम नहीं बदल रहे।
पर क्या समाज इतना पतित है! हर कोई इतना पतित है! क्या यही सच है? क्योंकि आखिर में हमारा वास्तविक मूल्यांकन समाज ही करता है। समाज ही अंकेक्षक है। पर समाज...! यह तो विरोधाभाषी शब्द संरचना मात्र है।
कई मामले में वास्तविक नायक को नायक मानता है...?
क्यों यह खलनायक को नायक मानने लगता है..?
क्योंकि समाज वाह्य चमक से प्रभावित होता है। और समाज चूंकि हमसे है तो समाज में भी दो धाराएं हमेशा रही है। सत्य और असत्य।
असत्य की धारा, असत्य के साथ। सत्य की धारा, सत्य के साथ बहती है। तब, यह कैसे तय हो की कौन सी धारा सत्य है, कौन सी असत्य..?
और सबसे बड़ी चुनौती, असत्य के धारा चीख चीख कर कहती है, मैं ही सत्य हूं...!
और सत्य की ताकत मौन प्रसार है। सत्य चीखता नहीं है। यह केवल आत्म स्वीकृति है। सत्य जिसके पास है वह, और सत्य से जो प्रभावित हुआ, वह। दोनों मौन है।
तय हमे करना है। हमको इतना साहसी होना पड़ेगा..! यह बहुत छोटा प्रयास है। पहला प्रयास यह करें कि अच्छाई को प्रचारित करें। उसे फैलाएं..। वायरल करें। कहें कि वह, ईमानदार है। वह सत्य है। यह कैसे होगा।
यह मानवीय बुद्धिमत्ता से संभव है। जब हम इससे प्रभावित हों तो यह संभव है।
आज के समय में दुष्प्रचार भी यही हैं । हम आंख मूंद कर गंदगी को फैला देते है। वह चाहे फेक न्यूज हो अथवा फेक धारणा (मेरेटिव) ।
हमें चेक करना चाहिए। संतुष्ट होना चाहिए। और आज के समय में जब हमने हाथ में पूरी दुनिया है। हम आसानी से इसे चेक कर सकते है। थर्मामीटर लगा सकते है।
और जब आप पाते है कि यह असत्य है। तो आप की जिम्मेवारी बड़ी हो जाती है। बड़ी इस लिए की अब आप उसका विरोध कर सकते है। पर यह सभी से संभव नहीं है। तब हम इतना जरूर करें कि असत्य के साथ खड़े नहीं हों...!
यह तो सभी से संभव है। पर हम यह नहीं करते है। हम भीड़ का हिस्सा बन जाते है। और ओशो कहते है, भीड़ के पास अपना दिमाग नहीं होता। वह जुंबी है...! बस इतना ही। बाकी सब ठीक है।


बाकी सब सब जगह ठीक ही होने लगा है :)
जवाब देंहटाएंएकदम जबरदस्त,बाकी का का ठीक है विचारणीय है।
जवाब देंहटाएंसादर।
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नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १८ नवंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
''हम बदलेंगे, युग बदलेगा'' सुंदर संदेश !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर एवम प्रेरणा दायक संदेश
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