17 सितंबर 2010
दिवास्वापन
हर कोइ चाहता है
कुछ करना
परिवर्तन समाज में
भागीदारी विकाश में
देख कर अपने आस पास
होंतें है सब निराश
कोइ आगे आए
लगाए हुए हैं यही आस
दुसरा भी
यही उम्मीद लगाए है
और परिवर्तन दिवास्वपन सा
हर किसी के अन्दर दफ़न हो जाता है.
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