29 फ़रवरी 2016
जय किसान
26 फ़रवरी 2016
इस हमाम में सब नंगे है..क्या बीजेपी, क्या कोंग्रेस, क्या वाम, क्या आप
इस हमाम में सब नंगे है..क्या बीजेपी, क्या कोंग्रेस, क्या वाम, क्या आप
जेनयू में जिस महिषासुर के महिमामंडन की कथा स्मृति ईरानी ने संसद में पर्चा पढ़ी और संसद में जेनयू के छात्रों के गन्दी राजनीति को पर्दाफास करने का दावा किया वही दावा अब बीजेपी के गले की फ़ांस बन गयी है।
स्मृति ने इसे देवी दुर्गा के अपमान से जोड़कर उछाला और अब विपक्ष उसे इस मामले में घेर रही है कि स्मृति में देवी दुर्गा का अपमान किया।
और राजनीति के हमाम की नंगई देखिये कि देवी दुर्गा के अपमान करने के जिस मामले को बीजेपी जैसी स्वघोषित धर्म रक्षक, राष्ट्रवादी पार्टी ने उठाया उसी पार्टी के सांसद आज महिषासुर शहादत दिवस के मुख्य अतिथि रहे उदित राज जी है।
09 फ़रवरी 2016
ढेंकी
ढेंकी,
यही नाम है इसका। पुराने ज़माने में चावल और चूड़ा इसी से बनाया जाता था। इसके लिए महिलाएं हाड़तोड़ मेहनत करती थी।
मैंने माँ और दादी को इसपे मेहनत करते देखा है और इसपे बने चूड़ा का स्वाद भी लिया है, उसकी मिठास आज मुँह में आज भी बरक़रार है...
आपने देखी है क्या?
08 फ़रवरी 2016
एक और कबीर इस दुनिया को अलविदा कह गए..... निदा फाजली को श्रद्धाजंलि
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मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिये
अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना
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संयोग कहिए कि आज जगजीत सिंह की जयंती के दिन ही निदा फाजली ने इस फानी दुनिया को अलविदा कह दिया। एक संयोग यह कि भी आज सुबह दस बजे से जगजीत सिंह पे लिखी पोस्ट को फेसबुक पे पोस्ट करना चाह रहा था और फोटो अपलोड नहीं हो रही थी। अंततः जब पोस्ट किया तो उसी के साथ ही निदा फाजली के जाने की खबर मिली। गमगीन खबर। आज के समय में शायद ही उनके जैसे दिलो दिमाग पे चोट करने वाले शायर और कवि फिर कोई मिले...बिल्कुल कबीर की तरह मन की गहराई पे चोट करते थे.....कितने ही गजल गायकों को इनकी लिखी गजल ने बुलंदी तक पहूंचाया...श्रद्धाजंलि स्वरूप उनकी एक रचना...
जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना
यूँ उजालों से वास्ता रखना
शम्मा के पास ही हवा रखना
घर की तामीर चाहे जैसी हो
इस में रोने की जगह रखना
मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिये
अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना
मिलना जुलना जहाँ ज़रूरी हो
मिलने-जुलने का हौसला रखना
तुम हार के दिल अपना, मेरी जीत अमर कर दो....और वह दिल हार गई...
05 फ़रवरी 2016
मन की बात, बस यूँ ही
कभी कभी निराशा में डूब जाता हूँ, जब भबिष्य और वर्तमान की सोंचता हूँ, खास कर तब। पर गुरुदेव ओशो ने सिखाया है प्राकृति के साथ बहो, लड़ो मत। बस बचपन से बहता जा रहा हूँ।
जीवन की नाव हमेशा मझधार के बीच झंझावातों में फंसी रही और मेरे नाव का कभी कोई मांझी न रहा। मैं भी अपने हाथ में कहाँ कभी पतवार थामी, बिना पतवार के चलता रहा हूँ।
जाने कब तक और कहाँ तक जाऊंगा। कभी कभी थक सा जाता हूँ। अब कभी मन समझौतावादी होने का दबाब बनाता है....पर कहाँ हो पता है।
न चारणी करूँगा
न चाकरी करूँगा
जबतक है जान ऐ जिंदगी
तूफानों से लड़ता रहूँगा।।
कमबख्त समाज कहाँ
किसी का हुआ है,
राम से सीता का
परित्याग कराया!
कृष्ण पे भी
कलंक लगाया!
कुंती का नहीं,
कर्ण का
उपहास उड़ाया..
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