16 जनवरी 2019

हिंसात्मक होते समाज का सच और आंखों देखा हाल..

अरुण साथी

सड़क हादसे में मौत के बाद जो मंजर आजकल विभिन्न जगहों पे देखने को मिलती है वह बहुत ही डरावना और भयावह है। किशोर और युवा इसमें बहुसंख्यक होते है। फिर रोड जाम से शुरू होकर गाड़ियों में आग लगाने, यात्रियों को पीटने, पुलिस और प्रसाशन को गाली गलौज और उससे मारपीट, स्थानीय दुकानों पे पथराव, आगजनी जैसे भयावह माहौल में सबकुछ बदल जाता है।

आंखों देखी डरावनी सच

इस मामले बीती शाम भी आंखों देखी बात है। कॉलेज के पास हुए हादसे के एक मिनट में मौके पे पहुंच गया। नो एंट्री में घुसे ट्रक में दो बाइक सवार को रौंद दिया। कई नौजवान आक्रोश में थे। नौजवानों ने घायल को जबरन वाहन को रोककर अस्पताल पहुंचाने की कोशिश की, पर किसी ने मदद नहीं की। सभी निकल गए। एक कार वाले बंधु स्वेच्छा से आगे आये। बाहर के लोग थे। खैर वे अस्पताल ले गए। कईं लोग फोटो खींच वायरल करना ज्यादा जरूरी समझ तो किसी ने मृतक का मोबाइल भी चुरा लिया।

कुछ युवाओं ने खूब मदद की पर उस मंजर को देख अभी भी सिहर जाता हूँ।

दोनों युवक तड़प रहे थे और मैं विवश था। स्थानीय थाना ने मोबाइल नहीं उठाया। पुलीस अधीक्षक दयाशंकर जी ने तत्काल रिसीव की। उनके द्वारा पुलिस को भेजने की बात कहीं गयी पर आधा घंटा लगा पुलिस को आने में। तबतक एम्बुलेंस के लिए भी कॉल किया पर वह भी आधा घंटा में पहुंचा। हमसब वहां बेचैन थे। एक को जिसे ट्रक ने रौंद दिया था उसे मृत समझ लिया गया पर सांस चलने की बात पे अस्पताल पहुंचाने में लग गए। खैर फिर कोई तैयार नहीं हुए। कोई नहीं रुका।

जो महसूस किया या रोज देखता हूँ वह ज्यादा डरावना है

मौके पे जो महसूस किया वह बहुत डरावना है। पुलिस मौके पे पहुंचने से पहले चौकीदार को भेज वहाँ का माहौल पता किया। फिर बड़ी संख्या में पुलिस बल के साथ पदाधिकारी मौके पे पहुंचे। पहुंचते ही लाश को उठाया और पोस्टमार्टम के लिए ऐसे भागी जैसे लाश वहां रहेगी तो बिस्फोट हो जाएगी। पदाधिकारी मृत युवक के मृत होने को लेकर जांचने की कोशिश नहीं की। मैंने ध्यान दिलाया तो प्रयास हुआ। फिर बताया कि सदर अस्पताल में पोस्टमार्टम से पहले डॉक्टर जांचते है।

उधर नौजवान आक्रोशित हो रोड जाम लगा दिया। उसी में एम्बुलेंस भी पहुंची पर बेकार। और अस्पताल के भी यहीं होता। रेफर करना।

रेफर करना एक भय या जिम्मेवारी से भागना।

अस्पताल में घायल मरीज को सबसे पहले प्राथमिक उपचार नहीं करके रेफर करने की प्रक्रिया की जाती है। इसका एक कारण जिम्मेवारी से भागना है तो दूसरा मौत के बाद हंगामे का डर। फिर पटना रेफर कर दिया जाता है और 100 किलोमीटर जाते जाते ज्यादातर मरीज की मौत हो जाती है। डॉक्टर में यह धारना बन गयी है कि मौत के बाद हंगामा होगा और उनके जान को आफत हो सकता है, जो सच भी...!!

हादसे का जिम्मेवार कौन..?

कल के हादसे का जिम्मेदारी ट्रक चालक और पुलिस की ही है। निश्चित। नो एंट्री में पैसे और रसूख से ट्रक प्रवेश करा दिया जाता है और ट्रक जल्दी से भागने के चक्कर मे हादसे को अंजाम दिया। खैर, चालक सहित कल ट्रक पकड़ लिया गया। पुलिस द्वारा, पर यदि पब्लिक पकड़ती तो क्या हो जाता...? देखने वालों ने बताया कि हादसे के बाद ट्रक चालक भागने के चक्कर मे ट्रक को बैक किया जिससे ट्रक घायल होकर गिरे युवक पे चढ़ गई और नतीजा मौत..!

इसी तरह के कई मामलों में कई जगहों पे तो चालक को पीट पीट कर मर दिया गया। आग के हवाले कर दिया जाता है। नतीजा। चालक हादसे के बाद भागने में ऐसा नर्भस होते है कि कई हादसे हो जाते है।

बाईकर्स की गलती

मैं तो बाइक चालक के हादसे में मौत के बात कई बार कह चुका हूं कि अब सहानुभूति नहीं रखता। जरा भी नहीं। कितने हादसे को नजदीक से देखा है। ज्यादातर में बाइक चालक की गलती होती है, अपवाद को छोड़कर। कल की घटना अपवाद है।

जैसे मैट्रिक परीक्षा के दौरान बाइक के पीछे उल्टा बैठकर कर सेल्फी लेने के दौरान चालक मित्र को भी पीछे देखने ले लिए कहने और संतुलन बिगड़ने के बाद गिरने और पीछे से ट्रक के चढ़ा देने में किसे दोष दीजियेगा?

उस मामले में भी जो बबाल हुआ वह आज भी डरावना है।

खैर, अब आईये आक्रोश पे। निश्चित रूप से हम एक भ्रष्टाचार युक्त समाज में रहते है। नतीजा सामने है। फिर भी जो मंजर कई बार देखा वह हमारे अंदर के हिंसा की ही प्रतिमूर्ति है।

कल भी परिवार के लोगों ने जाम को खत्म की बात कही। जैसा कि प्रवधान है बीस हजार तत्काल राहत और चार लाख मुआवजा की तो अधिकारी ने इसकी प्रक्रिया की। चार लाख तत्काल नहीं मिलना है। उसकी प्रक्रिया है। पेचीदा भी। फिर भी बहुत लोग को मिला है।

रोड जाम और हंगामा का मनोविज्ञान

रोड जाम और हंगामा ज्यादातर मामले में मुआवजे के लिए होती है। प्रक्रिया में अधिकारी के आश्वासन के बाद परिवार के लोग जाम खत्म करने के लिए आग्रह करते है पर कोई उनकी नहीं सुनता। कल शाम ऐसा ही मंजर था। जाम खत्म की घोषणा के बाद पुलिस गाड़ियों के बढ़ाने लगी। तभी कृष्ण चौक के उपद्रव करके लौटे युवाओं की टीम परिवार वालों से कहाँ मानने वाले। तोड़फोड़ शुरू ही रखा। और तभी एक स्विफ्ट कार में अपने छोटे बच्चों और महिलाओं से साथ जा रहे कार पे भीड़ ने हमला कर दिया। बड़े बड़े पत्थर फेंके जाने लगे, लाठी से हमला हुआ। मंजर अकल्पनीय। किसी की हिम्मत नहीं। फिर भी कुछ ने प्रयास किया। बच्चे और परिवार बस ईश्वर को याद करने लगे। ओह!

ओशो कहते है

खैर, यह आक्रोश हमारे अंदर की हिंसा का धोतक है। आचार्य ओशो एक प्रवचन में कहते है। हिंसा हमारे अंदर है। यदि किसी दिन अखबार में हत्या, बलात्कार की खबर न हो तो हम कहते है आज कोई खबर नहीं है अखबार में! हम हिंसक है। भाई भाई में झगड़ा करते है पर परोसी से हो तो एक हो जाते, फिर गांव गांव हो तो एक हो जाते और फिर देश देश से हो तो एक हो जाते। यह हमारी हिंसात्मक होने का प्रतीक है।

जो भी हो, इस आक्रोश से नुकसान तो समाज का ही होना है। डर से पुलिस नहीं आएगी, डॉक्टर इलाज नहीं करेंगे...और मरना हमे ही है..

बात तो बड़ी हो करेके पर की फायदा? लोग के उपदेश हो कि सोशल मीडिया पर जादे भचरभचर करे से कोई फायदा नै होतो। एकतो कोई पढतो पूरा बात नै और उपदेश पेल देतो, दोसर! नकारात्मक बात के भेलू बड़ी हो....तबहियो अप्पन हिस्सा के काम तो करे के चाही..हई कि नै..

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