15 दिसंबर 2025

नितिन नवीन और धुरंधर की कबुद्धी

नितिन नवीन और धुरंधर की कबुद्धी बिहार में दो बातें एक साथ हो रही। एक बीजेपी की। एक आम कार्यकर्ता को देश का अध्यक्ष बना दिया गया। दूसरा, उपेद्र कुशवाहा ने अपने बेटा को बिना चुनाव लड़े ही मंत्री बना दिया। और दूसरा यह भी कि नीतीश कुमार के पुत्र निशांत को राजनीति में आने के प्रयास शुरु हो गए। अब पहली बात पर। पटना के कई बार के विधायक, नितिन नवीन को बीजेपी ने कार्यकारी अध्यक्ष बनाया तो एक बारगी हंगामा हो गया। मीडिया में बात ऐसे उड़ी जैसे जंगल में आग लगी हो। ऐसा क्यों हुआ। ऐसा इसलिए हुआ कि आज के समय में देश की कोई भी प्रमुख पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए जगह बचा के नहीं रखी है। सभी में परिवारवाद नीजी कंपनी के संचालन की तरह है। एक नीतीश कुमार थे, अब उनका यह तगमा भी जल्द छिन जाएगा। राजनीति में अब पूंजीवाद और मायावाद है। मायावाद के जाल में मतदाता को उलझा लिए तो विजेता, नहीं तो गरे।बिहार में भी अभी यही हुआ। बिहार में अब नई पीढी के युवा राजनीति में आ चुके हैं। भविष्य उनका ही है। ऐसे में बीजेपी ने ऐसा क्यों किया, यही पता लगाने में लोग पसीने बहा रहे। कयास लगा रहे।
एक से धुरंधर कबुद्धी कर रहे। पर किसी का समीकरण नहीं सध रहा है। इसका मुख्य कारण कई है। पहला, नितिन नवीन बिहार के दबंग जतियों का प्रतिनिधित्व नहीं करते। वे सौम्य, शांत माने जाने वाले कायस्थ जाति से है। इनका बिहार या देश में बड़ा वोट बैंक भी नहीं है। भले ऐ सवर्ण जाति से आते है पर सवर्णों के स्वभाव से बिल्कुल उलट हैं। दूसरा, इससे कहीं कोई चुनावी समीकरण नहीं सध रहा, एक बंगाल है जहां थोड़ चांस है, पर यह मुख्य कारक नहीं माना जा रहा । मतलब, मुख्य कारक, पार्टी के लिए समर्पित कार्यकर्ता को उठा कर देश के स्तर पर ले आना। यह आज गुम होते सामाजिक राजनीति के बुझते चिराग को बचाने का बड़ा प्रयास है। बिहार में नई पीढ़ी के नेता, तेजस्वी गुमान में गुम है। बिहार में दो बार मौका मिलने पर वे केवल धन संचय में लगे रहे। सवर्ण से धृणा की राजनीति उनके पिता की बिरासत है, वे इसे संभाल रहे। राहुल गांधी के पास राजनीति की वह समझ नहीं है जो जनता का दिल छू सकें। वे केवल तुष्टीकरण में लगे है।इसे उनके समर्थकों को छोड़, बाकि सब समझते हैं। बिहार में नीतीश कुमार के पुत्र निशांत, शांत है। राजनीति के तिकड़म को समझना उनके बस का नहीं लगता। चिराग पासवान स्टारडम में खोये हुए है। जनहित से दूर दूर तक सरोकार नहीं। ऐसे में बीजेपी का यह कदम लाेगों को उम्मीद की किरण दिखती है। और बीजेपी ऐसा लगातार करती रही है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें