संत कबीर की इन चंद पक्तियों के साथ नववर्ष की मंगलकामनाऐं
कली खोटा जग आंधरा, शब्द न माने कोय।
चाहे कहूं सत आइना, जो जग बैरी होय।।
नींद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग।
और रसायन छांडि के, नाम रसायन लाग।।
काजल केरी कोठड़ी, तैसा यहु संसार।
बलिहारी ता दास की पैसिर निकसण हार।।
जागो लोगों मत सुवो, ना करूं नींद से प्यार।
जैसा सपना रैन का, ऐसा यह संसार।।
भेष देख मत भूलिये, बूझि लीजिये ज्ञान।
बिना कसौटी होत नहीं, कंचन की पहिचान।।