बिहार सरकार ने प्रदेश को शराब प्रदेश बना दिया। यहां गली गली शराब की सरकारी दुकानें खोल दी गई । हवाला दिया गया कि इससे अवैध शराब पर अंकुश लगेगी। पर मामला उलटा ही निकला। जहां गांवों में शराब बेचने की खुली छुट मिल गई वहीं इसी के साथ साथ चुलौआ अवैध शराब की बिक्री भी जमकर होने लगी। अकेले शेखपुरा जिले में 500 से अधिक घरों में चुलौआ शराब बनाई जाती है और एक दर्जन ठिकानों पर नकली शराब की पैंकिंग होती है।
शराब का यह अवैध करोबार पुलिस की साझेदारी से ही चलती है। एक अडडों से पुलिस को 1000 से 1500 तक का बंधा बंधाया रकम मिलती है। इस हिसाब से यह पच्चास लाख इस काला कारोबार से सिर्फ पुलिस के हिस्से जाती है। वहीं नकली पैंकिंग करने वालों के द्वारा एक लाख तक का महिने में नजराना दिया जाता है। जितने थानों में इनका करोबार है उतने में बंधी रकम पहूंच जाती है।
अब भला इतने बड़े काले कारोबार को पुलिस क्यों बंद करना चाहिए। इसी वजह से जब भी कहीं छापेमारी होती है पुलिस कारोबारियों को पहले से ही सूचना देते है और छापेमारी की औपचारिकता पूरी हो जाती है।
बुराइयाँ कानूनी या गैर- कानूनी नहीं होती, 'जायज नशा' यह सिर्फ सरकारी लफ्फाज़ी भर है, भला नशा भी कहीं 'जायज' होता है.....
जवाब देंहटाएंनशे में बुरा काम ही होता है, वह जायज हो या नाजायज.....