01 दिसंबर 2018

किसान आंदोलन! चोंचलेबाजी या होगा किसानों का भला

किसान आंदोलन सिर्फ चोंचलेबाजी या किसानों का होगा भला.

अरुण साथी

किसानों का मुद्दा फिर आज बीच बहस में है। दिल्ली की सड़कों पर रैलियां हैं और सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी विरोधी किसानों की रैली की तस्वीर के साथ साथ मीडिया को भी कोस रहे। बिकाऊ मीडिया पर रैली को नहीं दिखाने का आरोप है।

इसी क्रम में आज तक जैसे न्यूज़ चैनलों पर किसानों की रैली का कवरेज मैंने देखा। एक झलक यह भी देखा कि जब मीडिया के लोग वाइट लेने के लिए कैमरा आगे किया तो सूट-बूट में एक व्यक्ति पूरी तरह से अंग्रेजी झाड़ते हुए किसानों की समस्या पर बात कर रहे थे। तभी यह बात समझ गया की यह रैली पूरी तरह से प्रायोजित है।

दरअसल किसानों की स्थिति इसीलिए नहीं सुधरती क्योंकि किसान खुद अपनी समस्या को लेकर आगे नहीं आ रहे हैं।

कर्ज माफी समाधान नहीं

इसी तरह के प्रायोजित आंदोलनों की वजह से किसान को उनका हक नहीं मिल रहा। राजनीतिक लोग केवल किसानों की समस्याओं का समाधान किसानों की कर्ज माफी में देखते हैं। हालांकि कुछ लोग स्वामीनाथन रिपोर्ट को भी लागू करने की बात कह रहे हैं जिसमें यह कहा गया है कि लागत से डेढ़ गुना किसानों को मिलना चाहिए। किसानों की मूलभूत समस्या बहुत गंभीर है और गांव में किसान मजबूरी में ही खेती कर रहे।

बिहार और उत्तर प्रदेश के इलाकों में जो स्थिति है वह ज्यादा भयावह है। यदि किसी घर का लड़का हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, सूरत में जाकर कमाई नहीं करें तो उसे नोन रोटी पर भी आफत हो जाए।

कहने का मतलब यह कि किसान अब मजबूरी में ही खेती कर रहे हैं। किसानों की समस्या का समाधान कर्ज माफी मुझे दिखाई नहीं देता। कर्जमाफी केवल राजनीति का स्टंट है।

क्या है समाधान

किसानों की समस्याओं का समाधान सबसे सहज रूप में इस तरह से देखा जा सकता है कि किसानों के खेतों को सिंचाई के लिए मुफ्त में बिजली और पानी मिले। किसानों को खेतों में देने के लिए उर्वरक सस्ते दामों पर मिले। बिचौलिए उसको नहीं हड़प न ले।

किसानों को बीज के जंजाल में आज फंसा दिया गया है। खेती करना आज एक महंगा सौदा हो गया है। बीज की कीमत इतनी अधिक हो गई है कि कर्ज लेकर किसान बीज खरीदते हैं और खेतों में लगाते हैं और यदि मौसम ठीक नहीं रहा तो वह कर्ज में डूब जाते हैं।

पहले ऐसा नहीं होता था। पहले किसान अपने ही बीज से खेती करते थे कुछ इसी तरह के प्रयोग की जरूरत है।

दूसरी समस्या किसानों को फसल बेचने में होती है। सरकार सब्सिडी तो कुछ फसल पर देती है और सहकारिता वाले किसानों से धान भी खरीदते हैं परंतु यहां राजनीति का पंगा जबरदस्त है। किसानों से पैक्स वाले धान खरीदते हैं पर भ्रष्टाचार का आलम यह है कि 2 साल से कई किसानों को उसकी फसल का पैसा नहीं मिला।

आलम यह है कि किसान को पता भी नहीं होता और उनके नाम पर फसल बिक जाती है और पैसा पैक्स अध्यक्ष उठाकर मौज उड़ाता है।

एक और गंभीर समस्या किसानों के साथ यह भी देखने को मिलती है कि मजदूर नहीं होने से खेती एक बड़ी गंभीर विषय हो गई है। इसलिए भी लोग इस से मुंह मोड़ रहे। मजदूर अधिक पैसे की मांग करते हैं और किसान उतना देने में सक्षम नहीं होता।

मशीन अभी सब बेकार है

मजबूरन मशीन पर आश्रित होना पड़ता है परंतु इस वैज्ञानिक युग में जहां हम मंगल ग्रह पर जा रहे हैं और तरह तरह की तकनीक है परंतु खेती के सटीक उपयोग के लायक तकनीक आज भी नहीं है। जैसे धान अथवा गेहूं के फसल की कटाई का जो यंत्र है हार्वेस्टर वह पूरी तरह से बेकार और बकवास है।

हार्वेस्टर मशीन से धान की कटाई तो होती है परंतु उसका परली छोड़ दिया जाता है जो जलाने पे किसान मजबूर होते हैं और उनके मवेशी को चारा भी नहीं मिल पाता।

होना यह चाहिए था कि मवेशी का चारा भी बन जाता और धान भी निकल जाता। गेहूं में भी यही स्थिति है। फसल का बीज तो निकलता है परंतु उसके चारा बनाने का प्रक्रिया बहुत ही परेशानी वाला है।

इस यंत्र को ट्रैक्टर के साथ ऐसा बनाया जाना चाहिए था कि फसल से बीज भी निकल जाए और पशु का चारा भी बन जाए तो किसानों में खुशहाली होती।

सब्सिडी घोटाला

किसानों के यंत्र खरीदने के लिए दी जाने वाली सब्सिडी अधिकारियों के जेल में चला जाता है। जो सामान बाजार में ₹100 में उपलब्ध है वहीं सब्सिडी पर ₹200 मूल्य का मिलता है और सरकार इस पर ₹100 की सब्सिडी देती है। यह सब्सिडी अधिकारियों के जेब में चला जाता है इसलिए किसान का इसमें कोई भला नहीं।

कहने का मतलब यह है कि राजनीतिक से किसान का कभी भला नहीं होगा और सब से बड़ी बात यह है कि किसान अपनी समस्या खुद है । चुनाव में कभी भी किसान किसान नहीं होते। किसान हिंदू-मुस्लिम में बांटते हैं। किसान जातियों में बांट दिए जाते हैं। जब तक किसान अपनी समस्या को लेकर खुद आगे नहीं बढ़ेगा तब तक किसानों का भला यह राजनीतिक दल कभी नहीं कर सकते।

जो रैलियों के माध्यम से अपनी रोटी सेकना चाहते हैं। आप भले ही नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए बहुत सारा भीड़ जुटा लीजिए पर इस भीड़ से ना तो किसान का कल्याण होगा और ना ही किसान के घर में खुशहाली आएगी धन्यवाद।

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