पत्रकारिता एक अनुभूति ही है। डेढ़ दशक के पत्रकारीय अनुभव में कई बार इस अनुभूति को नजदीक से महसूस किया। सोमवार को भी शेखपुरा से अपने स्कूटर से सामान्य गति से आते हुए अचानक से इस तस्वीर की अनुभूति हुई । (अनुभूति इसलिए क्योंकि सड़कों पर बाइक चलाते हुए मैं इधर-उधर नहीं देखता । इसकी कई बार कुछ मित्रों ने शिकायत भी की है। दुर्घटना के बाद तो खैर इसमें और सावधानी बरतना पड़ रहा है।)
खैर, आगे स्कूटर रोककर तस्वीर खींच ली। आज यह दैनिक जागरण के प्रादेशिक पन्ने पर है। पत्रकारिता इसी अनुभूति का नाम है। खबरों को साथ के साथ जब हम सोने, उठने, बैठने, लगते हैं तो इसी तरह की अनुभूति जागृत हो जाती है। शायद छठी इंद्रियां इसी को कहते होंगे। कई बार इसे नजदीक से महसूस किया है। उसी में से एक अनुभव यह भी रहा।
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