23 अप्रैल 2013

पहलवान गोली और कामुकता के बाजार में मीडिया।


पहलवान गोली! मेडिकल स्टोर पर यह आवाज सुन कर अचानक चौंक पड़ा। एक मजदूर टाइप का 45 या 50 वर्ष के व्यक्ति ने दुकानदार से कहा-पहलवाना गोली दिजिए। दुकानदार ने बियाग्रा टाइप की कमोत्तेजक गोली उसे दे दी। मुझे अजीब लगा। गांव के भोले भाले लोग भी इसकी चपेट में आ गए। कस्बाई ईलाके के मेडिकल स्टोरों पर इस तरह की दबाओं की बिक्री में बीते कुछ सालों में काफी इजाफा हुआ है। 
इन दबाओ के प्रचार में दवा दुकानों पर कामोत्तेजक पोस्टरों की भरमार रहती है। टीवी से लेकर अखबार तक में इसके विज्ञापन का एक बड़ा बाजार है। टीवी पर कंडोम से लेकर डीओ तक के विज्ञापन में कमोत्तेजना ही दिखाया जाता है। 

दिल्ली रेप कांड पर मीडिया मठाधीश चिल्ला चिल्ला कर नैतिकता की दुहाई दे रहे है और अखबारों के संपादक महोदय संपादकीय में नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे पर इनकी नैतिक का पाठ स्वयं के लिए लागू नहीं होता।
आखबारों में कामवर्द्धक दवाओं के विज्ञापन का एक बड़ा बाजार है जिससे देश भर के अखबार अरबों कमा रहे और इसके करोबारी खरबांे। पर सारा मामला ठगी का है। इसका बड़ा हिस्सा बिहार के नालन्दा जिले के कतरीसराय से चलाया जाता है। कहते है कि इस क्षेत्र के थाना प्रभारी के मासिक कमाई करोड़ में है और डाकघर के प्रभारी की भी करोड़ कमाई होती है। यहां पोस्टींग के लिए भी ये लोग लाखों खर्चा करते है।
इन लोगों के द्वारा कामोत्तेजक दवा देने का दाबा किया जाता है पर मैं व्यक्तिगत तैर पर ऐसे लोगों के जानता हूं जो यह करोबार करते है और उनके अनुसार वह खेतों के धांस फूस ही बेचते है।

कहने का तात्पर्य यह कि नैतिकता की दुहाई देने वाले चाहे हम हों या कोई और उसे पहले अपने से शुरू करनी चाहिए।

कामुकता का बाजार कस्बाई ईलाकों तक फैल गया है। मोबाइल में यह सर्वसुलभ भी है। यहां महज 10 रू0 में बच्चों के मोबाइल में ब्लू फिल्म लोड कर दिया जाता है। अभी हाल में ही ऐसा एक मामला बरबीघा में सामने आया जब पांचवीं का एक बच्चा स्कूल में अपने साथियों के साथ ब्लू फिल्म देख रहा था।
मतलब यह कि हम हर तरफ काम के बाजारबाद की चपेट में है। इंटरनेट पर पॉर्न फिल्म का मामला हो यह सर्व सुलभ ब्लू फिल्म की सीडी। कहीं कोई रोक टोक नहीं।

आज हजारों दामनी और गुड़िया चिल्ला चिल्ला कर इंसाफ मांग रही है पर सब कुछ एक ज्वारभाटे की तरह ही कुछ दिनों में शांत हो जाता है।

आज जरूरत कामुकता की जड़ पर चोट करते हुए उसके जड़ मूल से खात्मे की है और हां इसके लिए किसी अलग कानून को बनाने की जरूरत नहीं है बस जो कानून का पालन नहीं करबा पा रहे उसके उपर कार्यवाई की है।

और तब जाकर शायद गुड़िया के आंसूओं को हम  पोछ पाएगें...

2 टिप्‍पणियां:

  1. आज जरूरत कामुकता की जड़ पर चोट करते हुए उसके जड़ मूल से खात्मे की है बहुत सटीक प्रस्तुति,,,

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  2. मीडिया से तो उम्‍मीद बची नहीं है, कौन करेगा?

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