सर्वेक्षण में कहा गया है कि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में 44 फ़ीसदी लोग आज़ादी के पक्षधर हैं तो भारतीय प्रशासित कश्मीर में 43 फ़ीसदी लोग.
हालांकि डॉक्टर ब्रेडनॉक ने बीबीसी को बताया कि कश्मीर के किसी भी हिस्से में आज़ादी को लेकर बहुमत नज़र नहीं आया.
उनके मुताबिक ये स्पष्ट है कि अगर आज 1948-49 के संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के मुताबिक कश्मीर के भविष्य पर जनमतसंग्रह करवाया जाता है तो इससे मसले का हल निकलने के आसार कम ही हैं.
डॉक्टर ब्रेडनॉक ने भारत और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में 3700 से ज़्यादा लोगों से बात की ताकि विभिन्न मुद्दों पर उनकी राय पूछी जा सके.
उन्होंने कहा कि भारतीय प्रशासित कश्मीर में मत बहुत ज़्यादा बंटा हुआ था.
सर्वे के मुताबिक ज़्यादातर लोग विवाद का हल चाहते हैं हालांकि इसका कोई 'आसान' समाधान नहीं है.
सर्वे से जुड़े अन्य तथ्य इस तरह हैं-
1 दोनों ओर कश्मीर के लोग मानते हैं कि ये विवाद निजी स्तर पर उनके लिए अहम है.
2. मानवाधिकार हनन संबंधी मामलों को लेकर भारतीय प्रशासित कश्मीर में 43 फ़ीसदी लोग चिंतित हैं जबकि पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में 19 फ़ीसदी.
3. पाकिस्तानी खेमे में बेरोज़गारी को लेकर 66 प्रतिशत लोगों में चिंता है जबकि भारतीय खेमे में 87 फ़ीसदी लोगों में.
4. पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में 27 फ़ीसदी और भारत प्रशासित कश्मीर में 57 फ़ीसदी लोग मानते हैं कि शांति वार्ता सफल होगी.
डॉक्टर ब्रेडनॉक का कहना है, "सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि ऐसा कोई एक हल या प्रस्ताव नहीं है जिसे समाधान के तौर पर पेश किया जा सके और जिसे ज़्यादातर लोगों का समर्थन मिले. पर ये सर्वेक्षण कुछ संकेत ज़रूर देता है कि भारत, पाकिस्तान और कश्मीरी प्रतिनिधियों को मिलकर राजनीतिक प्रक्रिया को आगे बढा़ना चाहिए."
मै एक भारतिय होने के नाते BBC के इस सर्वेक्षण को बकवास समझता हू मै 12 वीँ मे पढता हू और मेरी राय मे भारत को पाकिस्तान के आगे नही झुकना चाहियेँ
जवाब देंहटाएंमुकेश यादव
ब्रिटेन, बीबीसी और इसाई मिशनरियाँ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले हैं। ये एक-दूसरे के लिये काम करते हैं। यह सर्वेक्षण फर्जी होगा। यह बताने की जरूरत नहीं कि अंग्रेजों पर विश्वास करना कितना खतरनाक है।
जवाब देंहटाएंदेशविरोधियों के बड़ते षडयन्त्रों को रोकने की सख्त जरूरत
जवाब देंहटाएंइन्होने एक ही लेख में तीन तरह के आँकड़े दिये है. फिर विश्वास का तो सवाल ही नहीं उठता.
जवाब देंहटाएंअजी मुल्लो का मिडिया सरकार भी मुल्लो की...
जवाब देंहटाएंवो अंधे बहरे क्या सुनेंगे हम लंगड़े-लुल्लो कि...
कुंवर जी,
देखिये बीबीसी से ज्यादा विश्वसनीयता अभी तक कोई भी न्यूज़ एजेंसी या इलेक्ट्रोनिक मिडिया नहीं हासिल कर पाई है ,ये तो एक कटु सत्य है / रही बात आजादी की चाह तो भारत जैसी आज़ादी और किसी देश में नहीं है ,बस यहाँ जरूरत है तो पारदर्शिता और सरकारी व्यवस्था की ईमानदारी से निगरानी की /
जवाब देंहटाएं